भारतीय ओबीसी अधिकार आंदोलन “आज और कल”-
आजादी के पूर्व भारत में अंग्रेजों के शासनकाल में सन् 1871 से 1931 तक प्रत्येक 10 वर्ष के पश्चात ओबीसी संवर्ग की जनगणना की जाती थी। इस आधार पर देश की कुल आबादी का 52 प्रतिशत ओबीसी थे देश में ओबीसी समाजिक राजनीतिक आर्थिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े थे। महाराष्ट्र में सन् 1902 के कालखंड में छत्रपती शाहु महाराज के शासनकाल में ओबीसी वर्ग को 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया था जिसका उल्लेख महात्मा ज्योतिराव फुले ने भी अपने लेखन में किया था।
सामाजिक न्यायिक एवं समता के भाव से दिए जाने वाला आरक्षण देश की आजादी प्राप्त होने तक जारी रहा। देश की स्वतंत्रता के पश्चात संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी की कड़ी मेहनत से संविधान की धारा 340 के अनुसार ओबीसी के सभी संवर्ग को आरक्षण का प्रावधान किया, संविधान की धारा 341 के अनुसार एस. सी. वर्ग एवं धारा 342 के तहत एस. टी. वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था एस. सी. वर्ग की पूरी जाति की सूची तैयार होने के कारण उनको शेड्यूल 1 के साथ जोड़ा गया था, उसी तरह एस. टी. वर्ग की पूरी जाति की सूची तैयार होने के कारण उनकी सूची शेड्यूल 2 के साथ में जोड़ी गई लेकिन ओबीसी वर्ग की जाति की सूची ना होने से ओबीसी की अनुसूची तैयार नहीं हो सकी इसी कारण संविधान की धारा 340 के क्रियान्वयन के लिए पहली लोक सभा में आयोग गठित कर ओबीसी के सभी वर्ग की जातियों की सूची बना कर अनुसूची तैयार करने का सुझाव दिया गया था अनुसूची जाति और जनजाति की अनुसूची तैयार होने से इन दोनो प्रवर्गों को आजाद भारत में क्रमश: 15 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत आरक्षण शिक्षा व नौकरी में लागू किया गया लेकिन ओबीसी संवर्ग की सूची तैयार नही होने के कारण ओबीसी वर्ग को आरक्षण लागू नही किया गया।
सन् 1929 से मद्रास प्रांत में शुरू पिछड़ा वर्गीय आरक्षण को 1950 में संविधान लागू होने के बाद मा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार रद्द किया गया था। परन्तु ओबीसी नेता पेरियार रामास्वामी जी ने इसके विरूद्ध मद्रास प्रांत में तीव्र आंदोलन छेडदिया और इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप पहली बार संवाधान में ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया फलतः आज भी तमिलनाडू राज्य में ओबीसी का 50 प्रतिशत आरक्षण कायम है।
संविधान की धारा 340 तहत ओबीसी संवर्ग को अधिकार देने के लिए आयोग की सिफारिस को लागू करने के लिए डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर एवं अन्य ओबीसी नेताओं के प्रयासों के बावजूद तत्कालिन सरकार ने ओबीसी के हितो को दरकिनार कर देने की वजह से खाफा होकर डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर ने 27 सितम्बर 1951 को ओबीसी संवर्ग के हितों की रक्षा हेतु अपने मंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा उठाए गए इस कदम से घबराई सरकार ने 29 जनवरी 1953 को काका कालेकर की अध्यक्षता में ओबीसी आयोग की स्थापना की, इस आयोग की रिपोट 30 मार्च 1955 को लोकसभा में प्रस्तुत की गई, इस आयोग की रिपोर्ट में ओबीसी को शिक्षा तथा नौकरी में आरक्षण की रिफारिस की गई थी परन्तु आयोग के अध्यक्ष ने अपनेअधिकार का दुरुपयोग कर आयोग द्वारा दी गई रिपॉट से अपनी असहमति होने का पत्र राष्ट्रपति जी को सोपा परिणाम स्वरूप 25 वर्षो तक इस रिर्पोटको लोकसभा के पटल पर चर्चा एवं निर्णय हेतु रखा ही नही गया।
सन् 1978 में प्रधानमंत्री मोरार जी दिसाई की सरकार बनी ओबीसी नेताओं ने फिर से कालेकर आयोग का मुद्दा उठाया लेकिन सरकार ने बिना चर्चा किए कालेकर आयोग की रिपोर्ट रदद् कर 20 सितम्बर 1978 को श्री बी. पी मण्डल जी की अध्यक्षता में नये आयोग का गठन किया गया इस आयोग ने भी 2 वर्षों तक अध्ययन कर सम्पूर्ण रिपोर्ट महामहिम राष्ट्रपति को सौंपी उल्लेखनीय है कि इस रिर्पोट में भी कालेकर आयोग की रिफारिसो पर मुहर लगा दी गई इसके बावजूद भी यह रिर्पोट भी 10 वर्षों तक लोकसभा के पटल पर पेश नही कि गई परिणाम स्वरूप ओबीसी को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया दिसम्बर 1989 को प्रधान मंत्री वी. पी. सिंह जी की सरकार से मण्डल आयोग मान्य करने की मांग होने लगी श्री वी. पी सिंह जी ने इस रिर्पोट की रिफारिसो का अध्ययन करने के पश्चात इस पर सहमति दर्शाते हुए 7 अगस्त 1990 को लोकसभा में मण्डल आयोग की रिफारिसो को मंजूरी प्रदान कर लागू करने के घोषणा की गई। प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह द्वारा इस इतिहासिक निर्णय लेने के कारण उन्हे प्रधानमंत्री पद खोना पडा जिस कारण वे एकमात्र बहुजनवादी प्रधानमंत्री साबित हुए उनकी बहुजन – वादी भूमिका के कारण आरक्षण विरोधीयो ने उन्हें रावण करार देते हुए दशहरे के दिन उनका पुतला तक जलाया।
7 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफारिसो से भयभीत आरक्षण विरोधी सर्वोच्च न्यायालय में गए आखिरकार 1992 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में सकल 50 प्रतिशत आरक्षण 1992 को लागू किया गया सकल 50 प्रतिशत आरक्षण में एस. सी. 15 प्रशित तथा एस. टी. 7.5 प्रतिशत एवं ओबीसी को 27.5 प्रतिशत लागू किया एवं उसी के साथ ही ओबीसी में नॉन-क्रिमीलेयर की शर्ते लगी दी गई।
जो अधिकार ओबीसी को 1952 से मिलनी चाहिए थे उसे 40 वर्षों तक ओबीसी समाज से उनके अधिकारों से वंचित रखा गया कुल आवादी के 52 प्रतिशत वर्ग को नाममात्र 27 प्रतिशत देश में आरक्षण लागू किया गया। जबकि मध्यप्रदेश में मात्र 14 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया, जिसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने हेतु प्रक्रिया जारी है। ना ओबीसी को पदौन्नति में आरक्षण, ना ओबीसी का स्वतंत्र मंत्रालय, ना ओबीसी का अॅट्रासिटी कानून में समावेश, ना किसानो को फसलों का उचित दाम, ना ओबीसी को विधानसभा, भा में सीटो का आरक्षण और ना ही संख्या के अनुपात में समस्त क्षेत्रों में उचित प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है।
06 अप्रैल 2017 को दूसरी बार ओबीसी समाज को बर्बाद करने के लिए मा. सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया जिससे ओबीसी छात्र-छात्राओं का भविष्य अंधकार मय कर दिया गया, देश आजाद होने के वर्षों बाद भी कुल आबादी का 65 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी समाज का होने पर भी यह अन्याय लगातार जारी है।
संख्या के अनुपात में विधान सभा , लोक सभा मे ओबीसी आरंक्षण लागू करो।